Saturday, June 9, 2012

गजल (कविता)की रचना Creation of Poetry


अब पिछली पोस्ट में लिखे निम्न नियम के आधार पर गजल की रचना समझते हैं। नियम यह हैं:

1. सबसे पहले गद्य के जितने निकट हो सके ऐसे पद्य की भाषा में लिखो,
2. मोह त्याग कर अर्थ भाव व अंतर्संबंध देखो,
3. काफिया ठीक करो,
4. रदीफ़ संभालो,
5. तकतीअ  करो व मात्राएँ दुरुस्त करो,
6. बहर में करो,  तगज्जुल या रवानी देखो 
7. फिर ग़ज़ल कहो

काफिया और रदीफ़ की चर्चा  4 मई की पोस्ट में की जा चुकी है। अब बाकी बातें।

गद्य के निकट पद्य जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर:
"दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है। आखिर इस दर्द की दवा क्या है।। " इससे बेहतर उदाहरण क्या होगा!
अब देखें डा. कुंवर बेचैन के दो शेर:-
दो चार बार हम जो जरा हँस हँसा लिए। सारे जहां ने हाथ में पत्थर उठा लिए।।
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर। अच्छा किया जो आप ने सपने चुरा लिए।।

मोह त्याग कर अंतर्संबंध देखना:
दो शेर मुलाहिजा फरमाइए:
इक उम्र तेरे प्यार में करके तमाम चल दिए। पर दोस्त तेरे दिल में भी करके मुकाम चल दिए।।
यारों सफ़र में होंठ कभी खुश्क भी होंगे। लो अश्के चश्मे नम का करके इंतजाम चल दिए।।
प्रश्न है कौन चल दिया? फिर दोहराव है - अश्क व चश्मे नम एक ही बात है।
तो यह शेर कुछ यूं बने:
इक उम्र तेरे प्यार में करके तमाम चल दिए। पर दोस्त तेरे दिल में भी करके मुकाम चल दिए।। 
सोचा सफर में होंठ भी हो जायेंगे कुछ खुश्क। लो चश्मे नम का हम तो करके इंतजाम चल दिए।।
अभी बहुत कुछ बाकी है। तख्ती करनी है, मात्राएँ समझनी हैं, बहर या गजल का वज़न देखना है, तगज्जुल पहचानना है। फिर कभी!

Thursday, June 7, 2012

ग़ज़ल कहना सात कदम

डा. कुंवर बेचैन बताया कि ग़ज़ल अथवा कविता मनः स्थिति का प्रवाह होती है। भीतर यदि लय है तो प्रत्येक मनः स्थिति - सुख दुःख, टूटन व घुटन भी कविता हो सकती है। किन्तु यदि भीतर बिखराव या confusion है तो मन कविता  नहीं दे सकता। ग़ज़ल के शेरों में तगज्जुल अथवा रवानी आवश्यक है। ग़ज़ल के प्राण हैं कि यदि काफिया छोड़ कर वही बात गद्य में कही जय तो भी कमोबेश उसी रूप में रहे अतः शेरों को बातचीत की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। जैसे: -
दिले नादां तुझे हुआ क्या है। आखिर इस दर्द की दवा क्या है।।
ग़ज़ल का हर शेर आजाद होना चाहिए, ग़ज़ल लिखने के बाद उसके अर्थ भाव व अंतर्संबंध "मोह" त्याग कर देखने चाहिएं मोहित होने पर आकलन असंभव हो जाता है। ग़ज़ल की मात्राएं सही करने को  तकतीअ  करना कहते हैं। 

अतः ग़ज़ल रचना का नियम यह हुआ:-
1. सबसे पहले गद्य के जितने निकट हो सके ऐसे पद्य की भाषा में लिखो,
2. मोह त्याग कर अर्थ भाव व अंतर्संबंध देखो,
3. काफिया ठीक करो,
4. रदीफ़ संभालो,
5.  तकतीअ  करो व मात्राएँ दुरुस्त करो,
6. बहर में करो,  तगज्जुल या रवानी देखो 
7. फिर ग़ज़ल कहो 
ग़ज़ल कही जाती है, अर्ज़ की जाती है, सुने नहीं। 
यह कैसे किया जाता है? यह फिर कभी। 
अभी यह सात कदम!