Saturday, July 14, 2012

बह्र Bahr

अब हम थोड़ी चर्चा बह्र की करेंगे।इसमें जो ग़लतियाँ हैं वह मेरे ठीक ठीक न समझ पाने के कारण हैं, पूरी जानकारी के लिए डा कुंवर बेचैन की किताब "ग़ज़ल का व्याकरण " पढ़ें।
ग़ज़ल दो प्रकार की हो सकती हैं,
1. जिनमें पूरी ग़ज़ल में एक ही मौजूं अथवा विषय हो, जैसे किसी व्यक्ति व परिस्थिति पर - इसे मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।
2. जिसमें हर शेर आजाद होता है, इसे ग़ैर मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।
ग़ज़ल रुक्न यानि वज़न जो गुनगुनाहट का अंदाज़ है, उस की लय पर कही जाती है। रुक्न का बहुवचन अर्कान  है। अतः हर ग़ज़ल में गुनगुनाने लायक कुछ  अर्कान होते है। जैसे 
"फायलातुन  फायलातुन फायलातुन फायलुन"  इसमें फायलातुन एक रुक्न है। रुक्न के टुकड़े जुज़ कहलाते हैं व हर टुकड़े का एक वज़न होता है। जैसे फायलातुन में बड़ी मात्रा वाले टुकड़े का वज़न गाफ यानी गुरु कहलाता है तथा छोटी मात्रा वाला टुकड़ा लाम यानी लघु कहलाता है। लाम-गाफ का संयोजन वज़न कहलाता है। वज़न भार नहीं है बल्कि गुनगुनाने का अंदाज़ है। अतः 12 (लाम-गाफ) का वज़न तीन नहीं है बल्कि ल-ला है। 
अर्कान के वज़न के हिसाब से ही शेर कहा जाता है। शेर की पहली पंक्ति (मिसरा-ए - ऊला) की पहली रुक्न को सदर व आखरी रुक्न को उरूज़ कहते हैं। शेर की दूसरी पंक्ति (मिसरा-इ-सानी ) की पहली रुक्न को इब्तिदा व आखरी रुक्न को ज़रब कहते हैं। दोनों पक्तियों की बीच के सभी अर्कान हश्र कहलाते हैं। सालिम बह्र यानी शुद्ध  बह्र । मात्रा घटाने यानी ज़िहाफ करने से बनने वाली बह्र मुज़ाईफ कहलाती है। एक ही बह्र लेकर शेर कहने को, चाहे अर्कान सालिम हो अथवा मुज़ाईफ; मुफ्रद बह्र  तथा मिश्रित बह्र लेकर शेर कहने को मुरक्कब बह्र कहते है। बह्र व समंदर के हिज्जे उर्दू में एक ही है। यानी बह्र की दुनियां भी एक समंदर है, विशाल, अंतहीन। कुछ और चर्चा अगली पोस्ट में।