The Divine Truth of Hinduism: One Ishwar is the source of all powers and the ultimate benefactor of all living beings. Ishwar witnesses every thought and gives us the power to think coherently. Ishwar has no mortal attribute. What is the power to think coherently? See next post!
Bhakti Pradeep
This blog is mainly created by me to look inside my mind and record my spiritual journey. I am indebted to the grace of the supreme spiritual master and the fifth original Jagadguru of all times, Shri Kripalu ji Maharaj, who opened my mind to his philosophy of reconciliation in both the material and the divine worlds.
Tuesday, May 9, 2023
Sunday, May 7, 2023
Saturday, July 10, 2021
दिनांक २९ अप्रेल २०२१ को डॉ. कुंवर बेचैन का निधन हो गयाl उनके निधन से हिंदी कविता और ग़ज़ल का मंच बहुत निर्धन हो गयाl उनकी प्रतिभा असीम थीl माँ सरस्वती की उनपर असीम कृपा थीl ७९ वर्ष की आयु में भी मंच पर उनका युवाओं जैसा उत्साह दिखता थाl वह मंच पर न केवल सुनाते थे बल्कि अन्य सभी ,युवा तथा वरिष्ठ कवियों और शायरों की रचनाएँ ध्यान से सुनते थे और नोट भी करते थेl उनका विचार भारत के काव्य मंच का इतिहास लिखने का थाl
व्यक्तिगत रूप से वह आकर्षक व्यक्तित्व, बुलंद आवाज़ और मधुर गायन कला से संपन्न थेl अद्बभुत चित्रकार थे और बांसुरी बहुत सुन्दर बजा लेते थेl सौम्य, विनयशील, बहुत ही सज्जनl हम जब उनके घर उनके साथ भोजन करने बैठते थे तो सभी साथ खाने वालों को वह पहला कौर अपनी थाल से अपने हाथ से खिलाते थेl
मंच पर जब कविता सुनाने खड़े होते तब न केवल सभी कवियों वरन् जान पहचान के श्रोताओं का भी अभिनन्दन करतेl
उनकर गृह नगर गाज़ियाबाद में संकेत नाम की संस्था की स्थापना में अन्य बड़ी हस्तियों जैसे एम् एम् एच कोलेज के प्रिंसिपल डॉ. बी बी सिंह, मेरठ विश्वविद्यालय के भूतपूर्व वाइस चांसलर के बी एल गोस्वामी, प्रसिद्ध समाज सेविका श्रीमती मंजीत भाम्बरा आदि के साथ मैं भी सम्मिलित था तब डॉ. बेचैन के निकट आने का अवसर मुझे मिला थाl उनकी जीवन यात्रा अत्यन साधारण, सुविधाओं से वंचित बाल्यकाल से आरंभ होकर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि तथा शायर के रूप में सिद्ध एवं प्रसिद्ध होने की एक अद्भुत व् रोचक कथा हैl
डॉ. बेचैन ने लगभग सभी छंदों में गीत, लगभग सभी बह्र में ग़ज़ल, नवगीत, कवितायेँ , हाइकू, दोहा संग्रह, "मरकत द्वीप की नीलमणि" नामक उपन्यास व् "पांचाली" नमक खंडकाव्य भी लिखे।
'पिन बहुत सारे', 'भीतर साँकलः बाहर साँकल', 'उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख', 'एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की', 'दिन दिवंगत हुए', 'ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के', 'महावर इंतज़ारों का', 'रस्सियाँ पानी की', 'पत्थर की बाँसुरी', 'दीवारों पर दस्तक ', 'नाव बनता हुआ काग़ज़', 'आग पर कंदील', जैसे उनके कई ग़ज़ल संग्रह हैं तथा 'नदी तुम रुक क्यों गई', 'शब्दः एक लालटेन' आदि कविता संग्रह हैं।
उनका एक शेर मेरे मन में सदैव गूंजता है:
सारी धरा भी साथ दे तो और बात हैl पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात हैll
चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोगl पर दूसरा भी साथ दे तो और बात हैll
आज उनकी एक कविता भी याद आ रही है जिसकी दो पंक्तियाँ हैं;
आती जाती सांस दो सहेलियां हैं,
एक जा के दूसरे को भेज जाती हैl
और जिस गली में उनका आना जाना है,
फूस की वो झोपड़ी जीवन कहाती हैl
उनको विनम्र श्रद्धांजलि के रूप में उनके काव्य गुरु श्री कृष्ण बिहारी "नूर" लखनवी का एक शेर प्रस्तुत करता हूँ;
अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा हैl
"नूर" इस दुनियां से गया ही नहींll
Saturday, July 14, 2012
बह्र Bahr
ग़ज़ल दो प्रकार की हो सकती हैं,
1. जिनमें पूरी ग़ज़ल में एक ही मौजूं अथवा विषय हो, जैसे किसी व्यक्ति व परिस्थिति पर - इसे मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।
2. जिसमें हर शेर आजाद होता है, इसे ग़ैर मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।
ग़ज़ल रुक्न यानि वज़न जो गुनगुनाहट का अंदाज़ है, उस की लय पर कही जाती है। रुक्न का बहुवचन अर्कान है। अतः हर ग़ज़ल में गुनगुनाने लायक कुछ अर्कान होते है। जैसे
"फायलातुन फायलातुन फायलातुन फायलुन" इसमें फायलातुन एक रुक्न है। रुक्न के टुकड़े जुज़ कहलाते हैं व हर टुकड़े का एक वज़न होता है। जैसे फायलातुन में बड़ी मात्रा वाले टुकड़े का वज़न गाफ यानी गुरु कहलाता है तथा छोटी मात्रा वाला टुकड़ा लाम यानी लघु कहलाता है। लाम-गाफ का संयोजन वज़न कहलाता है। वज़न भार नहीं है बल्कि गुनगुनाने का अंदाज़ है। अतः 12 (लाम-गाफ) का वज़न तीन नहीं है बल्कि ल-ला है।
अर्कान के वज़न के हिसाब से ही शेर कहा जाता है। शेर की पहली पंक्ति (मिसरा-ए - ऊला) की पहली रुक्न को सदर व आखरी रुक्न को उरूज़ कहते हैं। शेर की दूसरी पंक्ति (मिसरा-इ-सानी ) की पहली रुक्न को इब्तिदा व आखरी रुक्न को ज़रब कहते हैं। दोनों पक्तियों की बीच के सभी अर्कान हश्र कहलाते हैं। सालिम बह्र यानी शुद्ध बह्र । मात्रा घटाने यानी ज़िहाफ करने से बनने वाली बह्र मुज़ाईफ कहलाती है। एक ही बह्र लेकर शेर कहने को, चाहे अर्कान सालिम हो अथवा मुज़ाईफ; मुफ्रद बह्र तथा मिश्रित बह्र लेकर शेर कहने को मुरक्कब बह्र कहते है। बह्र व समंदर के हिज्जे उर्दू में एक ही है। यानी बह्र की दुनियां भी एक समंदर है, विशाल, अंतहीन। कुछ और चर्चा अगली पोस्ट में।
Saturday, June 9, 2012
गजल (कविता)की रचना Creation of Poetry
1. सबसे पहले गद्य के जितने निकट हो सके ऐसे पद्य की भाषा में लिखो,
5. तकतीअ करो व मात्राएँ दुरुस्त करो,
6. बहर में करो, तगज्जुल या रवानी देखो
काफिया और रदीफ़ की चर्चा 4 मई की पोस्ट में की जा चुकी है। अब बाकी बातें।
गद्य के निकट पद्य जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर:
"दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है। आखिर इस दर्द की दवा क्या है।। " इससे बेहतर उदाहरण क्या होगा!
अब देखें डा. कुंवर बेचैन के दो शेर:-
दो चार बार हम जो जरा हँस हँसा लिए। सारे जहां ने हाथ में पत्थर उठा लिए।।
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर। अच्छा किया जो आप ने सपने चुरा लिए।।
मोह त्याग कर अंतर्संबंध देखना:
दो शेर मुलाहिजा फरमाइए:
इक उम्र तेरे प्यार में करके तमाम चल दिए। पर दोस्त तेरे दिल में भी करके मुकाम चल दिए।।
यारों सफ़र में होंठ कभी खुश्क भी होंगे। लो अश्के चश्मे नम का करके इंतजाम चल दिए।।
प्रश्न है कौन चल दिया? फिर दोहराव है - अश्क व चश्मे नम एक ही बात है।
तो यह शेर कुछ यूं बने:
इक उम्र तेरे प्यार में करके तमाम चल दिए। पर दोस्त तेरे दिल में भी करके मुकाम चल दिए।।
सोचा सफर में होंठ भी हो जायेंगे कुछ खुश्क। लो चश्मे नम का हम तो करके इंतजाम चल दिए।।
अभी बहुत कुछ बाकी है। तख्ती करनी है, मात्राएँ समझनी हैं, बहर या गजल का वज़न देखना है, तगज्जुल पहचानना है। फिर कभी!
Thursday, June 7, 2012
ग़ज़ल कहना सात कदम
5. तकतीअ करो व मात्राएँ दुरुस्त करो,
6. बहर में करो, तगज्जुल या रवानी देखो