Monday, April 30, 2012

काव्य जीवन Life as Poet

1996, होली से पूर्व की घटना है. मिसेस भाम्भ्रा ने एक दिन कहा कि प्रदीप जी होली मिलन का कार्यक्रम है, काफी लोग आ रहे हैं आप भी आ जाना लेकिन कुछ सुनाने को तैयार रहना. गायन का तो कुछ रियाज़ भी नहीं था. कुछ प्रयास करता तो हंसी उड़वाने वाली बात होती इसलिए एक अतुकांत कविता लिख डाली. अतुकांत इसलिए कि तुकांत कविता, छंदों आदि का कुछ ज्ञान तो था नहीं. कविता कुछ यूँ थी:
ऐ मेरे बच्चे
मैंने तुम्हें कुछ रंग दिए थे 
और कहा था रंग कीमती हैं 
संभल कर इस्तेमाल करना इन्हें
व्यर्थ न बहाना 
और अगर 
समझ न आये इस्तेमाल तो
तो मेरी और देखना 
और देखना मेरी रचनाओं को 
तब तुम रंगों का इस्तेमाल 
रचनाओं कि देखभाल 
उन्हें संभालना 
निखारना 
सीख जाओगे 
देख लिया होता 
तो मेरे कुछ
अधूरे चित्रों में 
कुछ और रंग भरे होते
और कुछ रंगों के इस्तेमाल 
शायद कुछ कम किये होते
अब भी रुक जा
लाल हरे पीले रंग
कुछ कम बहा, कुछ बचा 
रंगों के सीधे, सच्चे 
इस्तेमाल का मौका 
आज
होली ही तो है
इस हथियार से लैस मैं पहुँच गया होली मिलन के कार्यक्रम में.वहां देखा तो काफी संगीतकार, गायक, शायर, कवि व् अन्य कई प्रकार के कलाकार भी आये थे. मिलाया गया मुझे उन सब से. एक सज्जन से मुलाकात करवाई गई - आप हैं डा. कुंवर बेचैन, मशहूर कवि, सहायक व साहित्यकार, एम् एम् एच कालेज में हिंदी के प्रोफेसर हैं. मेरे तो हाँथ के तोते उड़ गए व अपनी रचना का फटीचरपना याद आया. उसी समय पुकार लगी - अब आप के सामने आ रहे हैं श्री प्रदीप वाजपेयी, जो आप को अपनी एक रचना सुनायेंगे! लोग सावधान हो गए. मैं नर्वस हो गया. अब कोई चारा भी नहीं था. मरता क्या न करता? जैसे तैसे कर के सुनाना शुरू किया. कुछ आवाज़ में दम भर कर के. ताकि रचना कि कमी आवाज़ में छुप जाये. उम्मीद तो कम थी लेकिन उम्मीद पर ही दुनियां कायम है.
     

Sunday, April 29, 2012

शहर हिल मिल गया The City Becomes Freidly

मिसेस भाम्भ्रा ने कई लोगों से मिलवाया. सर्कल बढ़ता गया. शहर के साहित्यकारों, संगीतज्ञों, पत्रकारों आदि से भेंट हुई, कई गायन, वादन आदि प्रतियोगिताएं में जज बनने लगा.  लेकिन संगीत के नाम पर मुझे उतना भी नहीं आता था जितना उन बच्चों को जिनके कार्यक्रम में मैं जज बनता था. अतः तलाश थी किसी ऐसे की जो संगीत के बारे में कुछ तो बता दे. इसी बीच किट्टू को सैनुस की समस्या हुई, आफिस के एक सहकर्मी सुबिमल बैनर्जी ने डा. सोम नाथ बैनर्जी के बारे में बताया की वह होमियोपैथी के एक कुशल डाक्टर हैं उनको दिखा लो. उनसे कुछ दिनों किट्टू का इलाज चला, लाभ हुआ तो राज, मेरी पत्नी का भी इलाज कराया. भले आदमी थे, बुजुर्ग, लगभग 70 - 75 वर्ष  के किन्तु सुन्दर लाल सुर्ख चेहरा, मीठी वाणी, अच्छे होमियोपैथ. मिलना जुलना होने लगा तो पता चला कि पटियाला घराने के जगत प्रसिद्द गायक उस्ताद बड़े घुलाम अली खां के शिष्य हैं. इच्छ हुई कि इनसे कुछ जन लूं. लेकिन मन मौजी व्यक्ति थे. अतः हिम्मत नहीं होती थी. धीरे धीरे शास्त्रीय संगीत में अपनी रूचि जतलाई. सुन क्र खुश हुए लेकिन कुछ सुनाया अथवा बताया नहीं. आना जाना होता रहा. एक दिन शाम का समय था, मैं मिलने गया था, वर्षा होने लगी थी इसलिए कोई मरीज़ भी नहीं था. खुद ही कुछ गाने लगे, राग मल्हार में. मुझे बहुत भाया. मैंने प्रसंशा की तो कहने लगे की तुम भी कुछ सुनाओ. मैं ठहरा कोरा, कुछ हिचका फिर हिम्मत कर के कुछ सुनाया तो कहने लगे की तुम्हारी डीप सोनोरस वोइस है. तुम गा सकते हो. फिर कुछ दिनों के बाद खुद ही बोले मैं तुम्हें कुछ बताऊंगा. फिर शुरुआत हुई एक लम्बे कठिन रियाज़ की. जो लगभग दो वर्ष तक लगातार चला. मेरे लिए उन्होंने चुना राग भोपाली, खुद ही बंदिश बनाई -  स स ध  प ग रे स रे ध स रे ग रे ग, देखो देखो लोगों सब नन्द दुलाल को. ... कुछ थेओरी भी बताई. मेरा मन में संगीत भरने लगे. इधर उनकी आज्ञा से मैं सगीत प्रतियोगिताएं में जज बनना स्वीकार करने लगा. अब बारी थी डा. कुंवर बेचैन के मेरे जीवन में आने की.

Saturday, April 28, 2012

गाज़ियाबाद, भूमिका Preface

सन 1991 में मैं चंडीगढ़ से ट्रान्सफर होकर गाज़ियाबाद आया. मन बड़ा उदास था क्योंकि कहाँ चंडीगढ़ चंडीगढ़, साफ सुथरा शहर और कहाँ गाज़ियाबाद? अव्यवस्थित, गन्दा, झुग्गी झोपड़ियों से भरा, उस समय  यह शहर दिल्ली का एक अविकसित उपनगर मन जाता था. कुछ भी ढंग का खरीदना हो तो दिल्ली जाओ. यहाँ सब कुछ जैसा तैसा ही मिलेगा, कामचलाऊ. मुश्किल से किट्टू का एडमिशन हुआ सेंट मेरीस कान्वेंट में. घर किराये पर मिला, अनिल शर्मा का, पहली मंजिल का. उसके ऊपर कुछ न बना होने के कारण खूब गर्म. सोने चलो तो रात रात भर बिजली गायब! रुला दिया इस शहर ने! लेकिन धीरे धीरे शहर कुछ बदला. एक दिन ऑफिस के एक सहकर्मी ललित शर्मा ने कहा की मेरी एक सांस्कृतिक संस्था है ओस्कार नाम की, हम लोग स्कूल के बच्चों का एक डांस कम्पटीशन करने जा रहे हैं, क्या आप उनके जज बन सकते हैं. मैं ने मान लिया. उस डांस कम्पटीशन की एक और जज थीं मिसेस भाम्भ्रा उनसे मुलाकात हुई और फिर धीरे धीरे शहर मुआफिक आने लगा. बाक़ी किस्सा कुछ समय बाद.

Wednesday, April 25, 2012

मां दुर्गा Maan Durga

एक छोटा सा पद मां दुर्गा पर, विषय बाद में बताऊंगा:
दिव्य देह धारिणी,
जन दुर्गति हारिणी,
मनः क्लेश जारिणी,
परम शांति कारिणी,
प्रसीदतु हे मां दुर्गे,
मम हृदय विहारिणी. 

Tuesday, April 24, 2012

एक पद A Pada


श्री महाराज जी की वाणी मुझपर कुछ ऐसा असर डालने लगी की मैं उन्हीं की भाषा में सोचने व रचना करने लगा, एक उदाहरण निम्नांकित है जिस से मेरी बात अधिक स्पष्ट हो जायगी-
जगद्गुरु अब मोकहुं अपनाव.
मिथ्याभिमान बसहि  उर भीतर, किरपा करहु मिटाव.
जस नाटकु मैं करहूँ जग जाहिर, मोको वैसा बनाव.
छेड़त पल छिन माया तुम्हरी ओको तनिक समझाव.
अन्तः करण होत नित मैलो, तुम्हीं सुच्छ बनाव.
निष्ठुर भावहीन उर भीतर अपनी भक्ति जगाव.
सुनहु कृपालु न आस आन ते, अब तुम्हीं अपनाव.

Friday, April 20, 2012

प्रथम प्रभाव The First Impression

मैं नहीं जनता कि मैं कैसे और क्यों श्री कृपालु जी महाराज से प्रभावित हुआ. मैं तो अपने को एक नास्तिक मानता आया था. हाँ यह अवश्य था कि मुझे ज्ञान की खोज थी. हर प्रकार के ज्ञान की. चाहे वह संगीत हो, नाटक, चित्रकारी अथवा कविता. सन 1996  में चंडीगढ़ से ग़ाज़ियाबाद ट्रान्सफर होने पर मैं बिलकुल खुश नहीं था. कहाँ चंडीगढ़, साफ, सुथरा, सुसंस्कृत लोग और कहाँ ग़ाज़ियाबाद! उस समय झुग्गी झोपड़ियों से भरा, क्रिमिनल एरिया. कम से कम संस्कृति के लिए तो ग़ाज़ियाबाद जाना ही नहीं जाता था. फिर किसी सभ्य व्यक्ति को उस शहर से भला क्या आशा होती? लेकिन जीवन में अत्प्रत्याशित मोड़ आना ही तो ज़िन्दगी कहलाती है! तो इस शहर ने एक नहीं कई अप्रत्याशित मोड़ दिखलाये जिसकी चर्चा धीरे धीरे होती रहेगी. अभी इतना ही.