Wednesday, May 2, 2012

काव्य जीवन Poetic Training

मेरा तथाकथित काव्य पाठ समाप्त हुआ, मैं नर्वस था, यह भी भूल गया कि मैं कहाँ बैठा था। उसी समय डा.  कुंवर बेचैन की आवाज़ आई - बाजपेयी जी आप यहाँ मेरे पास बैठिये। बैठ गया मैं जाकर डा. कुंवर बेचैन के पास। उपनाम उनका बेचैन था लेकिन बेचैन था मेरा मन। डा. साहब ने कहा  बाजपेयी जी  आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं! कब से लिख रहे हैं? मैंने सोच कि दाई से भी कहीं पेट छुपता है और कह दिया की कुछ बेतुकी रचनाएँ यूही मन बहलाव के लिए कभी कभी लिखता रहा हूँ। इससे अधिक न मुझे कुछ आता है न कभी कुछ सीखा। विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ , साहित्य की कुछ बैक ग्राउंड नहीं है। डा. साहब ने कहा कुछ भी हो आप  के विचार व उनका प्रकटीकरण बहुत अच्छा है। आप अच्छा लिख सकते हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार ने उत्साह बढाया वह भी पहली रचना पर! नर्वसनेस कुछ कम हुई। फिर देखा कई लोगों ने, साहित्यकार, पत्रकार व अन्य सम्मानित व्यक्तियों ने भी आकर बधाई दी। अब मैं नार्मल सा हो गया। डर समाप्त हो गया। उस समय से आज तक सदैव डा. कुंवर बेचैन का सहयोग मिलता रहा है। बहुत परिश्रम किया है उन्हों ने मेरे लिये। वह बात भी लिखूंगा। अभी उनके एक शेर से टाइपिंग को विश्राम देता हूँ:
सारी  धरा भी साथ दे तो और बात है , पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है। 
चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग, पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है।।

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