Monday, May 7, 2012

काव्य शास्त्र संक्षिप्त निरूपण

डा. कुंवर बेचैन ने आगे बताया कि कलाकार की प्रथम क्षमता भाव का आनंद लेने की हो तत्पश्चात कलाविशेष की प्रतिभा व व्युत्पत्ति का अभ्यास किया जाय, कुछ परिभाषाएं जो उन्होंने बताई वे निम्नांकित हैं:
कविता - गद्य से हटकर तुकांत या अतुकांत रचना सामान्य रूप से कविता कहलाती है। 
गीत - जो गाया जासके वह गीत कहलाता हैं जैसे फिल्मी गीत "बैठ जा बैठ गई, खड़ी हो जा खड़ी हो गई।"
काव्य, Lyric - जो कागज़ पर भी गीत हो जिसकी अंतर्ध्वनियां एक structure के नियमों का पालन करती हों।
काव्य दो प्रकार के होते हैं - 
1. प्रबंध काव्य 
2. मुक्तक काव्य 
प्रबंध काव्य 
जैसे 1 महाकाव्य, 2 खंड काव्य, 3 एकार्थ काव्य
प्रबंध काव्य का विषय कोई संज्ञा होती है जैसे दिनकर की राम की शक्ति पूजा , महाकाव्य सम्पूर्ण अथवा जीवन पर्यंत का विवरण जैसे तुलसी दास की राम चरित मानस, खंड काव्य में केवल एक घटना विशेष का वर्णन होता है यथा श्याम नारायण पाण्डेय की हल्दी घाटी, एकार्थ काव्य में एक subject होता है जैसे जय शंकर प्रसाद की कामायनी। 
मुक्तक काव्य 
जो प्रबंध काव्य न हो।
बंद  - गीत का अन्तरा 
छंद - काव्य नियम का पालन करती रचना यथा वर्णिक, मात्रिक व बहर।
नज़्म - नज़्म एक विषय को लेकर कही ग़ज़ल होती हा जैसे मर्सिया (हज़रात इमाम हुसैन की कर्बला में कुरबानी), मसनवी (कोई दास्ताँ जैसे हीर राँझा), कसीदा जैसे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की शान में कही गई ग़ज़ल, नज्म छोटी व बहुत बड़ी किसी भी रूप में हो सकती है। 
 रुबाई - चार मिसरों (पंक्तियों) की रचना। इन मिसरों में रब्त या अंतर्संबंध होता है। काफिया पहली, दूसरी व चौथी पंक्ति में होता है व कोई भी मिसरा आजाद नहीं होता। 
ध्यान रहे की अगर बहर भी हो और रदीफ़ भी हो तो भी अगर काफिया न हो तो तो काव्यात्मक व गाने योग्य होने पर भी किसी रचना  को  ग़ज़ल नहीं कहा  जा  सकता। काफिया ग़ज़ल में छड़ी लेकर खड़ा रहता है और शायर का ख़याल ही बदलवा देता है।
शेष फिर, पहले एक रुबाई :
कुछ देर तक ये माना सताता है इंतज़ार,
या यूँ कहें के दिल को जलाता है इंतज़ार। 
कुछ वक़्त इसके साथ गुज़ारा तो ये जाना,
कितना  करीब खुद के ये लाता है इंतजार।।


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